बाहर की उन्नति में कहीं अंदर से अवनति तो नहीं हो रही है। खुद को अंदर से टटोलिये
मैंने अपने जीवन में देश में कई क्षेत्रों में उन्नति देखी। विस्तार की जरुरत नहीं है, कुछ दशक पहले के समाज और आज के समाज में बहुत अंतर है।
साधन, सुविधायें, सौन्दर्य सभी का स्तर बढ़ा है। कुछ खोकर बहुत कुछ पाया है। आश्चर्यजनक उन्नति हुई है।
आप स्वयं से प्रश्न कीजिये कि आपने जीवन के किन क्षेत्रों में उन्नति की? क्या अर्जित किया है आपने?
जीवन में आगे और क्या अर्जित करने की आशा है?
धन बढ़ा, स्वास्थ्य सुधार हुआ, परिवार बढ़ा, समाज में सत्कार हुआ, परिवार बढ़ा, समाज में सत्कार बढ़ा या कुछ भी जो आपने अर्जित किया। सबकी सूची बना लीजिये।
अब प्रश्न कीजिये कि इन सब बाहरी दिखावे में या बाहरी सौन्दर्य में अनदेखा किस बात को किया?
बाहर की उन्नति में कहीं अंदर से अवनति तो नहीं हो रही है। खुद को अंदर से टटोलिये। कहीं लोभ, स्वार्स्थ, क्रोध, अहंकार के बीज तो उन्नत नहीं हो गये।
यदि अपने आप के साथ कुछ नहीं बोलते हो तो यकीनन आप मानते हो कि बाहर की उन्नति में कहीं अंदर के मानवीय गुणों को अनदेखा किया है।
आंतरिक उन्नति तो भूल ही गये। बाहर के लक्ष्य स्थापित करते-करते मानवीय गुणों की उन्नति या आंतरिक उन्नति की ओर भी एक कदम बढ़ायें।
सहनशीलता, परोपकार, प्रेम, उदारता, दया के बीज बोकर इन गुणों की उन्नति का भी प्रयास करें।
आंतरिक उन्नति के बाद बाहरी उन्नति का सुख कई गुना बढ़ जायेगा। सही मायने में आंतरिक उन्नति से जीवन की दशा बदल जाती है।
इन गुणों के उन्नत होने से आप जिस महानता का अनुभव करेंगे वह अमूल्य है।
बाहरी साधन जुटा लेना ही इंसान का लक्ष्य नहीं है। उसका लक्ष्य बहुत ऊंचा है। वह प्रकृति की सर्वोत्तम रचना जो है।
-कुलजीत कौर
(योगा एक्सपर्ट)
-गजरौला टाइम्स लाइफ.
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