दुनिया में चाहे गौरैया की प्रजाति लुप्त हो रही हो, लेकिन मेरे गांव में आज भी इनकी तादाद काफी है। मैं स्कूल के बच्चों को इनके संरक्षण के बारे में बताता रहता हूं
सुबह-सवेरे चहक-चहक कर,
नींद से मुझे जगाती है,
मूंगफली का दाना खाकर,
मीठे गीत सुनाती है।
ठीक यही दिनचर्या है मेरे घर में रहने वाली गौरैया के तीन जोड़ों की। मूंगफली के दाने उन्हें बहुत ही प्रिय हैं। और जब तक उन्हें प्राप्त नहीं होते वहीं कमरे के सामने उछलकूद मचाती रहती हैं।
कभी-कभी जब कई दिन तक मुझे याद न रहने या कहीं जाने पर सवेरे ही उड़कर बाहर चली जाती हैं और फिर दिन में मुश्किल से लौटती हैं, किन्तु रात में अपने घोंसले में आ जाती हैं।
ग्यारह साल पहले जब घर वाली इमारत में मैंने स्कूल शुरु किया था तब एक दिन मैंने देखा कि दो चिड़ियां चोंच में तिनके लेकर छत में गाटर में रखती हैं। फिर वो तिनके उन्हीं के पैरों की हवा से गिर जाते हैं।
बचपन से ही मैं इन्हें पसंद करता हूं। मैंने सीढ़ियों की ओर गाटर और दीवार के थोड़े स्थान में पुरानी फाइल फंसा दी। फिर हमने देखा चिड़िया बहुत खुश हुईं और तुरन्त अपना घोंसला बना लिया।
अण्डे रखे और बच्चे निकल आने पर उन्हें खिलाने-पिलाने में लग गयीं। हमने और से देखा, नर और मादा दोनों लगातार मेहनत करते और चोंच में दाना-पानी ले जाकर उन्हें देते।
बड़े होकर बच्चे उड़ गये किन्तु दो-चार दिन बाद जब मैं नमाज पढ़कर लौटा तो कई चिड़ियों में जबरदस्त लड़ाई चल रही थी या वही बच्चे थे या दूसरी चिड़ियां। अब वे भी वहीं घोंसला बनाना चाहते थे लेकिन पहले वाले जोड़े को ये कतई मंजूर न था।
मैंने लकड़ी के दो तख्ते दूसरे गाटरों में फंसाकर बराबर ही दो घोंसलों के लिए और जगह तैयार कर दी। मगर पुराने जोड़े ने उन जगहों को अपनी बैठक बना लिया।
अब वे घोसलों में नहीं बैठतीं बल्कि एक-एक दोनों जगहों पर बैठी रहतीं। मुझे हंसी भी आयी और गुस्सा भी।
गौरैया एक भोली-भाली चिड़िया की प्रजाति है जो साफ-सुथरी रहना पसंद करती है। ऊर्जावान, मेहनती, स्नेही और मनुष्यों से प्यार करने वाली चिड़िया है.
दो-तीन दिन में उनमें सुलह हो गयी और पता नहीं क्या शर्त रखी गयी। पुराने जोड़े ने नये जोड़ों को घोंसला बनाने की इजाजत दे दी।
तीन घोंसले साथ-साथ बन गये। स्कूल तो दूसरी जगह स्थानांतरित हो चुका है पर वो तीनों घोंसले आज भी हमारे घर की छत में मौजूद हैं।
इन ग्यारह सालों में जाने कितने ही बच्चे घोसलों से बड़े होकर उड़ चुके हैं। तीनों परिवार अब भी यहीं रह रहे हैं।
मुझे मेरे परिवार और स्कूल के बच्चों को भी इन्हें करीब से देखने का मौका मिला है। घोसलों से प्रेरणा लेकर स्कूल के बच्चों ने उनके संरक्षण पर काफी ध्यान दिया है।
दुनिया में चाहे गौरैया की प्रजाति लुप्त हो रही हो, लेकिन मेरे गांव में आज भी इनकी तादाद काफी है। मैं स्कूल के बच्चों को इनके संरक्षण के बारे में बताता रहता हूं।
गौरैया एक भोली-भाली चिड़िया की प्रजाति है जो साफ-सुथरी रहना पसंद करती है। ऊर्जावान, मेहनती, स्नेही और मनुष्यों से प्यार करने वाली चिड़िया है।
गौरैया का संरक्षण बहुत जरुरी है। पहले ये छप्परों में अपने घोंसले बनाती थी। अब इनके लिए घोंसले उपलब्ध कराना हमारा कर्तव्य है।
सरकार का घोंसले बांटने का प्रयास सराहनीय है। उम्मीद है गौरैया को नये घर पसंद आयेंगे।
घोंसले के साथ ही हमें यह विचार भी करना चाहिए कि ये भीषण गर्मी में घरों की तपन सहन नहीं कर पातीं इसलिए इनके लिए ठंडे स्थान पर घोंसले रखे जायें। घोंसले की जगह परिवर्तित करने से ये उसमें नहीं बैठेंगी। अंडों को यदि कोई छूले, ये उन्हें स्वीकार नहीं करेंगी।
गौरैया को मूंगफली, चावल, बिस्कुट, रोटी आदि के छोटे-छोटे टुकड़े प्रिय हैं।
गौरैया के बारे में जानने की जरुरत है। जानकारी के अभाव में इनका संरक्षण नहीं हो सकता। ये मनुष्य के सबसे ज्यादा करीब हैं। ये हमारे बिना रहना पंसद नहीं करतीं।
-फुरकान शाह.
Mail us at : gajraulatimes@gmail.com