ललिता देवी का ऐतिहासिक मंदिर गजरौला में है जो प्राचीन काल से श्रद्धालुओं का श्रद्धा केंद्र रहा है
गजरौला स्थित ललिता देवी का मंदिर प्राचीन काल से श्रद्धालुओं का श्रद्धा केंद्र रहा है। जहां प्रतिवर्ष चैत्र माह के प्रथम मंगलवार को दूर-दराज से भारी संख्या में लोग देवी के दरबार में हाजिरी लगाने आते हैं। इसके बाद चार अन्य मंगलवारों तक यह क्रम जारी रहता है।
ललिता मंदिर काफी विस्तृत क्षेत्र में है। जिसके चारों ओर दूर तक खाली जगह है। इस स्थान पर साल में लगातार पांच मंगल जुड़ते हैं जबकि प्रत्येक शुक्रवार को यहां साप्ताहिक बाजार भी लगते हैं। मंदिर का संचालन यहां का एक पंडा परिवार करता है।
मंदिर में ललिता देवी के साथ ही कई अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित की गयी हैं। इससे मंदिर का आकर्षण और भी बढ़ जाता है। अत: आगंतुकों की संख्या में भी वृद्धि होना स्वभाविक है।
देवी से मनौती मांगना, पूरी होने पर उसके दरवार में पुन: हाजिरी लगाना तथा नवजात शिशुओं का मुंडन संस्कार कराने के लिए लोग बार-बार यहां आते रहते हैं। मान्यता है कि ललिता के आशीर्वाद से मनोकामनायें पूरी होती हैं।
यहां मंगलवार को मिष्ठानों, चाट, पकौड़ी आदि के साथ महिलाओं और बच्चों के मनपसंद सामान भी मिलते हैं। सैकड़ों दुकानदारों की आय का साधन भी है यह मंदिर। मंदिर संचालक नाईयों को मुंडन क्रिया का ठेका दे देते हैं जिससे मंदिर को उससे आय होती है। चढ़ावे के तौर पर गेहूं, जौ तथा खील बतासे यहां चढ़ाये जाते हैं। कुछ लोग नकद राशि भी प्रतिमाओं को अर्पित करते हैं।
दूर दराज से मेले में आने वाले भक्तजन मोटर साइकिलों, कारों, बसों, रेल-गाड़ियों तथा निकटवर्ती कुछ लोग घोड़े-तांगों और रिक्शा आदि का उपयोग यहां आने में करते हैं। भैंसा-बुग्गी और ट्रैक्टरों से भी आसपास के गांवों से काफी लोग आते हैं।
मंदिर संचालक यहां आने वाले दुकानदारों से तहबाजारी जैसा शुल्क वसूल करते हैं। चढ़ावा, मुंडन संस्कार और तहबाजारी, तीन स्तरों पर मंदिर की आय निर्भर है।
-गजरौला टाइम्स लाइफ.
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